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Thursday 14 February 2013

जुनून से पाया पर्यावरण संरक्षण का जज्बा


जोधपुर । किसी काम के प्रति अगर जुनून न हो तो वह काम कभी भी मन से नहीं हो सकता । यह कहना है जोधपुर के खमुराम बिश्नोई का जो पर्यावरण को संरक्षित रखने का काम पूरे दिल से करते हैं। हालांकि शुरू में यह काम इतना आसन नहीं था। इस दौरान लोगों ने उन्हें पागल तक करार दे दिया था।
खमुराम ने 2007 में ही यह दृढ़ निश्चय कर लिया था कि उन्हें पर्यावरण को संरक्षित रखना है। इसके साथ ही उनके मन में यह सवाल भी कौंधता था कि यह महत्वपूर्ण
काम कैसे मुमकिन हो सकेगा। बहरहाल, जैसा कि कहते हैं ‘‘मैं तो अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।’’ खमुराम के साथ ही कुछ ऐसा ही हुआ। प्लास्टिक से उत्पन्न होने वाले कचरे पर हम सबकी नजर कई बार गई होगी और हमने इसे नजरअंदाज भी किया होगा पर खमुराम ने रास्ते पर पड़े ऐसे कचरे को हटाने में कभी भी संकोच नहीं किया। वे जयपुर से लेकर पंजाब के मेलों तक में जाते हैं। वहां जाकर वे प्लास्टिक के कचरे को उठाते हैं। इतना ही नहीं, वे धार्मिक स्थानों, पर्यटन व तीर्थ स्थलों के साथ ही जल संग्रहण वाले स्थानों पर जाकर वहां से भी प्लास्टिक का कूड़ा उठाते हैं।
पेशे से क्लर्क खमुराम को जब भी छुट्टियां मिलती हैं, वे समाजसेवा में जुट जाते हैं। उनका कहना है कि कोई भी काम कभी छोटा नहीं होता, बस नीयत साफ होनी चाहिए। खमुराम ने अब तक कुल 20 अवार्ड जीते हैं। वे बताते हैं कि 2008 में उन्हें फ्रांस में पर्यावरण पर आयोजित इंटरनेशनल काॅन्फ्रेंस में हाई लेवल स्पीकर के रूप में बुलाया गया था। वहां उन्होंने ।तम ीनउंदे इमपदह तमंकल जव चसंल वित जीम ेमतअपबमे दंजनतम चतवअपकमे पर अपने विचार व्यक्त किए। यह उनके जीवन का सबसे यादगार लम्हा था। इतना ही नहीं फोटो जर्नलिस्ट फ्रैंक वोगेले ने खमुराम व बिश्नोई समाज द्वारा किए जा रहे पर्यावरण संरक्षण संबंधी कार्य पर वर्ष 2010 में एक डाक्यूमेंट्री फि ल्म बनाई थी जिसका प्रसारण फ्रेंच चैनल 5 पर 11 जून 2011 को पेरिस में हुआ था। इससे पूर्व जिओ मैगजीन ने अपने विशेष अंक में खमुराम बिश्नोई पर लेख छापा है। इस लेख में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित उनके कार्यों का वर्णन है। इस कार्य के प्रति उनके समर्पण का ही परिणाम है कि अब लोग प्लास्टिक कचरे के दुष्प्रभाव के प्रति जागरूक हुए हैं और इसे बीनने से भी कतराते नहीं हैं। यह देख कर उन्हें ख़ुशी होती है कि इस सफर में लोगों का कारवां बढ़ता जा रहा है। बिश्नोई कहते हैं कि अगर जीवन में कठिनाइयां नहीं होती तो उन्हें इस काम के लिए कभी भी प्रेरणा नहीं मिलती और इसके लिए वे इतनी शिद्दत से कभी भी प्रयास नहीं कर पाते।

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