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Monday 16 September 2013

वृक्षारोपण दिवस पर 2900 पौधे लगाएगा बिश्नोई युवा संगठन :

फतेहाबाद : 14 सितंबर को अमृता देवी वृक्षारोपण दिवस पर बिश्नोई युवा संगठन 2900 पौधे लगाएगा। यह निर्णय प्रांतीय युवाध्यक्ष सुमीत गोदारा की अध्यक्षता में बिश्नोई मंदिर में आयोजित अखिल भारतीय बिश्नोई युवा संगठन की बैठक में लिया गया। युवा संगठन शहर सहित 60 गांवों में 2 घंटे के दौरान 2900 पौधे लगाने का कीर्तिमान स्थापित करेगा। जिलाध्यक्ष पवन गोदारा ने कहा कि अमृता देवी एक ऐसी महिला थीं जो वृक्षों की रक्षा करते हुए राजा के सिपाहियों की हिंसा की शिकार हुई और अपने प्राणों की बली दी। उन्होंने कहा कि हमें भी प्रण करना चाहिए की गुरु जम्भेश्वर भगवान के दिखाए मार्ग पर चलते हुए जीवों व वृक्षों को संरक्षण प्रदान करना चाहिए। इस मौके पर सुखराम, सुनील, पंकज, विष्णु, अमित, रमेश, विनोद, विकास आदि उपस्थित रहे।

Sunday 15 September 2013

वास्तुकला का नायाब नूमना है बिश्नोई मंदिर सिरसा

सिरसा : बिश्नोई धर्मशाला में नवनिर्मित ‘बिश्नोई मंदिर’ वास्तुकला का नायाब नमूना है। माना जा रहा है कि ‘शीशे की मीनाकारी’ से तैयार अपनी तरह का प्रदेश का संभवतया पहला मंदिर है। राजस्थान से लाए गए पत्थर और शीशे की अनूठी नक्काशी ने मंदिर की की खूबसूरती के चार चांद लगा दिए हैं।1नक्काशी के माध्यम से मंदिरों के चित्र, विष्णु भगवान के चित्र, निज मंदिर, मुकाम के चित्र उकेरे गए हैं। बताया जा रहा है कि जहां एक ओर मंदिर की दीवारों की खिड़कियों पर करीब 10 लाख रुपये के शीशे से नक्काशी हुई है वहीं दूसरी ओर छत पर 16 लाख रुपये की लागत से शीशे की नक्काशी की गई है। बिश्नोई सभा के प्रधान खेमचंद बैनीवाल, सचिव ओपी बिश्नोई का मानना है कि यह मंदिर वास्तु दोष से पूरी तरह मुक्त है। चंडीगढ़ से बनवाया गया मंदिर का नक्शा एक गुरुद्वारे से मिलता-जुलता है। राजस्थान के भरतपुर और किशनगढ़ से मंगाए गए विशेष पत्थरों से बाहरी दीवारों को सजाया गया है। विशेष आकर्षण का केंद्र बने मंदिर के भीतर का दृश्य और भी आकर्षक है। मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले रोहित कारीगर ने अपनी टीम के साथ मंदिर के भीतरी दीवारों और यहां तक की छतों पर भी बेहतरीन नक्काशी की है।

Saturday 14 September 2013

खेजड़ली दिवस पर किया रक्तदान :-


श्रीगंगानगर : अखिल भारतीय बिश्रोई युवा संगठन की ओर से खेजड़ली बलिदान दिवस पर रक्तदान शिविर लगाया व पौधरोपण किया। शिविर में 100 से अधिक युवाओं ने रक्तदान किया, इससे पहले अमर शहीदों की याद में पौधरोपण किया गया। बिश्रोई मंदिर परिसर में 10 पौधे लगाये व लंगर का आयोजन किया गया।

जहां वृक्ष ही देवता हैं :-


जब हमारा ऑटोरिक्शा जोधपुर शहर से बाहर निकला तो हमें कतई एहसास नहीं था कि जहां हम जा रहे हैं वह स्थान पर्यावरण का इकलौता तीर्थ होने की योग्यता रखता है। सदियों पहले जब पर्यावरण संरक्षण के नाम पर न कोई आंदोलन था और न कोई कार्यक्रम, तब वृक्षों के संरक्षण के लिए सैकडो़ं अनगढ़ और अनपढ़ लोगों ने यहां आत्मबलिदान कर दिया था। आत्माहुति का ऐसा केंद्र किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं हो सकता। लेकिन विडम्बना यह है कि पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर इतनी चिल्ल-पों मचने और पर्यटन के धुंआधार विकास के बावजूद यह स्थल अपनी दुर्दशा पर रोने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहा है। इसे तो स्वप्न भी नहीं आता होगा कि देश के पर्यटन मानचित्र में कभी इसका नाम भी आएगा !

राजस्थान के ऐतिहासिक शहर जोधपुर से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर प्रकृति के अंचल में बसा खेजड़ली गांव किसी भी पर्यावरण प्रेमी के लिए विषेश महत्त्व का हो सकता है। घुमक्कड़ी के क्रम में जब जोधपुर यात्रा का कार्यक्रम बना तो निश्चित हुआ कि खेजड़ली गांव हर हाल में देखना है। मैं उनसे सहमत था। राजस्थान को विषेशतः किलों और महलों का प्रदेश के रूप में जाना जाता है और जो भी वहां जाता है, इनसे बाहर नहीं निकल पाता। हमने सोचा कि इस बार उस भूमि को प्रणाम करके आना है जहां आज से लगभग ढाई सौ वर्ष पहले इस प्रकार की चेतना पैदा हो चुकी थी कि ‘‘सिर साटैं रूख रहे तो भी सस्तो जांण’’ अर्थात् यदि शी देकर भी वृक्षों की रक्षा हो सके तो उसे सस्ता जानो।
यह भी कम हैरान कर देने वाली बात नहीं है कि पर्यावरण रक्षा के नाम पर हम जिस चिपको आंदोलन की सराहना करते नहीं थकते और जिसका श्रेय हम आज के जिन पर्यावरणविदों को देते हैं, वे उसके अधिकारी नहीं हैं। वृक्षों के संरक्षण का महत्त्व तो यहां तब से दिया जा रहा है जब पर्यावरण प्रदूषण नामक समस्या का जन्म ही नहीं हुआ था। वन संरक्षण की शिक्षा तो इस देश की अनपढ़, अनगढ़ जनता और जनजातियां देती रही हैं। शायद हमारे भी मन में यह भ्रम रह जाता कि चिपको आंदोलन तो उन्नीसवीं सदी की देन है, यदि हम खेजड़ली की यात्रा पर नहीं जाते और बिश्नोइयो का वह त्याग न देखते।
चैदह अगस्त का दिन था। आसमान में बादल छाए हुए थे और रह-रहकर फुहारें आ रही थीं। राजस्थान में बादलों की उपस्थिति और फुहारों का पड़ना कुछ अलग ही आनंददायक होता है। रेलवे स्टेशन के पास अपने होटल से निकलकर जब हमने ऑटोरिक्शा वालों से खेजड़ली चलने की बात की ऐसा नहीं लगा कि वे वहां जाने के अभ्यस्त हैं और प्रायः जाया करते होंगे। कइयों ने अनभिज्ञता प्रकट की तो कुछ ने हमसे ही जानना चाहा कि क्या उसी खेजड़ली चलना है जहां लड़ाई हुई थी? ले-देकर एक ऑटो वाला जानकार निकला जो साढ़े तीन सौ रुपए में आने-जाने के लिए तैयार हो गया। लेकिन कुल मिलाकर उसे भी पूरी तरह यह विश्वास नहीं हो पा रहा था कि हम लोग वहां मात्र घूमने और शहीद स्थल देखने जा रहे हैं।
इस बार जोधपुर में कुछ बारिश हुई थी और इसके प्रमाण में दूर-दूर तक हरियाली फैली थी। मुख्य मार्ग छूट चुका था और अब हम हर सामान्य भारतीय गांव की ओर जाने वाली टूटी-फूटी एकल सड़क पर चले जा रहे थे। कुछ ही दूर गए होंगे कि घास के मैदान में मृगशावकों का झुंड देखकर मन उछल पड़ा। ऐसा नहीं था कि हम पहली बार हिरन देख रहे थे। हां, प्रकृति की गोद में इस तरह उन्मुक्त विचरण करते हुए मृगसमूह देखने का यह पहला अनुभव था। ये मासूम चार पैरों के हिंसक पशुओं से बच भी जाएं, मगर इन्हें दो पैरों के हिंसक समाज से कौन बचाए? यही कारण है कि मानव समाज की अपेक्षा जंगलों में स्वयं को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। लेकिन याद आया कि यह इलाका कुछ अलग किस्म के लोगों का है। ये वही लोग हैं जिन्होंने एक हिरन के शिकार के अपराध में फिल्म जगत की एक मशहूर हस्ती को भी दंड दिलाने में कोई रियायत नहीं बरती थी। ऐसे लोगों के बीच हिरन स्वच्छंद क्यों न विचरें?
मृगशावकों का कलोल देखने से हम भी स्वयंको रोक न सके और ऑटो रुकवाकर उतर पड़े। कैमरा निकाला और दो चार फोटो खींचे। एक झुंड निकलता तो दूसरा आ जाता और खेलते-कूदते उड़ंछू हो जाता छोटे शावक टेढ़े-मेढ़े उछलते हुए अपनी मांओं के चक्कर लगाते और शैतानी करते हुए दूर तक भाग जाते। माताएं परेशान होतीं, शावकों को मजा आता। बीच-बीच में वे दो चार घासें भी चर लेते, लेकिन लगता था कि वे घासें कम, वातावरण का स्वाद ज्यादा ले रहे थे। पेड़ों पर पक्षी कलरव कर रहे थे। पेड़ भी कौन से थे- अधिकांशतः बबूल, कीकर और खेजड़ी के, जिनका अधिकांश जीवन गुरबत में ही बीतता है- पानी की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष करते हुए। इस वर्ष कुछ बारिश हो गई थी इसलिए इनकी खुशी का पारावार नहीं था। वह ख़ुशी इनके चेहरे पर दिखाई दे रही थी। इनके भी दिन बहुर आए थे और वही संतुष्टि दिख रही जो गरीब को भरपेट भोजन मिल जाने पर होती है। इनका तो जीवन ही ऐसा है कि भूखे पेट भी दूसरों के लिए संघर्ष करते रहते हैं।
खेजड़ली गांव के शहीद स्मारक से ऑटो ड्राइवर भी पूरी तरह परिचित नहीं था। गांव में एक-दो लोगों से पूछकर वह शहीद स्मारक के सामने ऑटो लगा दिया। कुछ छिटपुट ग्रामीण इधर-उधर घूम रहे थे। सामने चारदीवारी से घिरा एक बेतरतीब सा बाग नजर आ रहा था। एक सामान्य से गेट को पारकर हम तीनों लोग अंदर घुसे तो हमारा स्वागत रास्ते के दोनों ओर घूम रहे मोरों ने किया। बारिश का मौसम था ही और मोर भी अपने पूरे रवानी में थे। रह-रहकर उनकी कुहुक रोमांचित कर जाती थी और इस प्रारंभिक स्वागत से ही मन बाग-बाग हो उठा। अभी दो-चार कदम ही चले होंगे कि घुटनों तक धोती और बनियान पहने एक देहाती से सज्जन हमारी ओर बढ़े। बड़े ही सलीके से हाथ जोड़कर उन्होंने हमें नमस्ते किया और परिचय पूछा। हम उनके राजस्थानी शिष्टाचार और सादगी से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। वैसे भी गांव में पले-बढ़े हम तीनों यात्री माटी की खुशबू को खूब पहचानने वाले थे। ये सज्जन थे शहीद स्थल के कर्मचारी वेराराम जी। हमारा परिचय पाकर और विषेशतः यह जानकर कि हम खेजड़ली के इतिहास और बलिदान स्थल को प्रणाम करने आए हैं, बहुत खुश हुए।
घटना सन् 1730 की है। जोधपुर के तत्कालीन राजा अभय सिंह अपने किले का विस्तार कराना चाहते थे और इसके लिए उन्हें खेजड़ी के वृक्षों की आवश्यकता थी। खेजड़ी के वृक्षों से चूना तैयार किया जाता था। खेजड़ली गांव के आस-पास इन वृक्षों की बहुतायत है और राजा ने अपने मंत्री गिरधर भंडारी को खेजड़ी के तमाम वृक्षों को कटवा लाने का आदेश दिया। जब मंत्री महोदय राजाज्ञा के पालन हेतु दल-बल सहित इसे इलाके में पहुंचे और खेजड़ी वृक्षों को कटवाना शुरू किया तो यह खबर गांवों में जंगल की आग की तरह फैली। गुरु जम्भेश्वर में अटूट आस्था रखने वाले बिश्नोई समाज के लोग खेजड़ी वृक्ष की सुरक्षा के लिए कटिबद्ध होकर विरोध करने लगे। जब मंत्री ने सैन्यबल का प्रयोग किया तो 84 गांवों के बिश्नोई इकट्ठा हो गए और अमृता देवी के नेतृत्व में उन्होंने वृक्षों को अपनी बाहों में भर लिया और किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने नारा दिया कि ‘‘सिर साटैं रूख रहे तो भी सस्तो जांण’’। आत्मबल और सैन्यबल का भयंकर संघर्ष हुआ जिसमें 363 बिश्नोई मारे गए। खबर जब राजा अभय सिंह के पास पहुंची तो उन्होंने इस जनांदोलन के सामने झुकने में ही भलाई समझी। यह विश्व का पहला चिपको आंदोलन था जो बहुत बड़ी कीमत चुकाकर सफल हुआ था। आज खेजड़ी राजस्थान का राजकीय वृक्ष है।
षिक्षित और जागरूक समाज इतना बड़ा बलिदान षायद ही दे ! वेराराम जी की वर्णन षैली और गाथा की गंभीरता से हम रोमांचित हो चुके थे। उनसे कुछ देर बाद पुनः मिलने का वादा कर हम षहीद स्मारक की ओर चल पड़े। उद्यान परिसर में ही एक कोने में एक छोटा किंतु अच्छा सा स्मारक बना हुआ है। यह भी देखकर सुखद लगता है कि इसकी साफ-सफाई भी अन्य षहीद स्मारकों की तुलना में अधिक है। पूरी घटना को संक्षेप में बयान करता हुआ एक बोर्ड भी लगा हुआ है जो अभी अच्छी हालत में है। स्मारक पर हम भी नतमस्तक हुए। बच्चों का एक समूह वहां घूम रहा था। अपनी अधिकतम जानकारी उन्होंने हमें दी और बताया कि साल में एक बार इस स्मारक पर बड़ा जमावड़ा होता है। वह दिन बलिदान दिवस की बरसी के रूप में मनाया जाता है। स्मारक के पीछे गुरु जम्भेष्वर जी का एक मंदिर निर्माणाधीन था जो बिष्नोइयों की प्रकृति प्रियता और श्रद्धा का प्रतीक है।
पूरा पर्यावरण शहीद स्मारक खेजड़ी के वृक्षों से आच्छादित है जहां भांति-भांति के पक्षी स्वच्छंद भाव से घूमते मिल जाते हैं। वापसी में वेराराम जी से दोबारा बातचीत हुई। हमने यह तलाशने की कोशिष की कि क्या वहां के लोगों में पेडों और जानवरों की सुरक्षा को लेकर वही जज्बा है जो उनके पूर्वजों ने लगभग ढाई सौ साल पहले दिखाया था। उन्होंने बताया कि प्राणों की तुलना में पेड़ों की कीमत तो उनकी परंपरा रही है, वह कैसे अलग हो सकती है!
मन आश्वस्त हुआ कि शायद प्रकृति बची रहे। जब तक हमारी बहुसंख्यक आबादी ग्रामीण रहेगी और प्रकृति में ईश्वर के वास का ‘अंधविश्वास ’ बचा रहेगा, धरती पर मानव के अतिरिक्त दूसरे जीव और पेड़-पौधे भी जीवित रहेंगे। लेकिन दुख इस बात का है कि प्रकृतिरक्षा के इस तीर्थ को मानो गोपनीय रखा गया है। न तो कोई प्रचार-प्रसार, न तो पाठ्यक्रम में चर्चा और न तो वहां तक पहुंचने की सुविधाएं। जो प्रेरणा नई पीढ़ी को यहां से मिल सकती है, वह शायद ही कहीं से मिले। हम कितने भी वन्य जीव अभयारण्य बना लें, बायो रिजर्व स्थापित करने का दावा कर लें और कितने भी कानून बना लें, विलुप्त होने की कगार पर खड़ी प्रजातियों को विलुप्त होने से नहीं रोक पांएगे। हमें ऐसे अनेक ‘खेजड़ली’ तलाशने और तराशने होंगे। हमने इसे भोली मानसिकता को प्रणाम किया और वेराराम जी को धन्यवाद देकर जोधपुर वापस चल पड़े। 

द्वारा : हरिशंकर राढ़ी

खेजड़ली शहीदों की स्मृति में आज दिल्ली में पौधरोपण :-


जोधपुर : अपने गांव व आसपास के क्षेत्रों में हजारों पौधे लगाने वाले एकलखोरी गांव के बुजुर्ग पर्यावरणप्रेमी रणजीताराम खीचड़ शनिवार को दिल्ली में खेजड़ली के 363 शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए पौधरोपण अभियान शुरू करेंगे। वे यहां खेजड़ी के 363 पौधे लगाएंगे। इनमें कई पौधों की सार संभाल वे अपने स्तर पर करेंगे तो शेष के लिए दिल्ली नगर निगम से सहयोग लेंगे। कई युवाओं ने उन्हें इस अभियान में सहयोग देने का भरोसा दिलाया है। 

खुद ने ही तैयार किए पौधे 
रणजीताराम ने खेजड़ी के ये पौधे अपने घर पर खुद की नर्सरी में तैयार किए हैं। शुक्रवार को खीचड़ अपने बेटे विशेक के साथ ये पौधे लेकर दिल्ली पहुंचे। उन्होंने बताया कि दिल्ली नगर निगम व संबंधित एजेंसियों से पहले ही पौधरोपण की अनुमति मिल चुकी है। वे स्मृति वन अभियान की शुरुआत इंडिया गेट व राजघाट पर पौधा रोपकर करेंगे। इसके बाद वे सिविल लाइंस स्थित श्री गुरु जंभेश्वर संस्थान भवन परिसर में भी पौधरोपण करेंगे। 
पनपने का विश्वास 
खेजड़ी शुष्क क्षेत्र में पनपने वाला पेड़ हैं लेकिन खीचड़ को विश्वास है कि दिल्ली की जलवायु में भी यह पौधा पेड़ बन जाएगा। वे बताते हैं कि खेजड़ी का पेड़ बहुत की कम पानी में जब मरुस्थल में जिंदा रह सकता है तो दिल्ली में न पानी की कमी होगी और न सार संभाल की। वे खुद समय-समय पर दिल्ली में रहकर इनकी देखभाल करेंगे।

Friday 13 September 2013

आदमपुर में वन्य विभाग के निरीक्षक पर हमला कर शिकारी छुड़वाए


मंडी आदमपुर/ बरवाला : पशु की खाल, खून व अंग बेचने वाले एक गिरोह के हमले में वन्य विभाग के निरीक्षक रामेश्वर दास, अखिल भारतीय बिश्नोई जीव रक्षा समिति के आदमपुर के प्रधान कृष्ण राहड़, रोहताश खिलेरी व विनोद खिलेरी घायल हो गए। हमलावर शिकारियों को भी छुड़ाकर ले गए।  जीव रक्षा समिति को सूचना मिली थी कि राजली में एक गिरोह नील गाय की खाल, खून व अंग बेचने का काम कर रहा है। समिति के सदस्य वन्य विभाग के निरीक्षक रामेश्वर दास को लेकर राजली पहुंचे। वहां उन्होंने फूल कुमार के घर से नील गाय का सिर, खून से भरा एक टब व जोहड़ के पास से खाल बरामद की। ग्राम पंचायत की मदद से वन्य विभाग के निरीक्षक रामेश्वर दास, शिकारी फुल कुमार, महेंद्र, बलवंत व भगवान दास को नील गाय के अवशेषों के साथ टाटा मैजिक में सवार होकर हिसार की ओर आ रहे थे कि बहबलपुर के पास गिरोह सदस्यों ने बाइक अड़ा कर वन्य विभाग के निरीक्षक रामेश्वर दास व चालक को पीटने लगे। पीछे से आ रहे कृष्ण राहड़, रोहताश खिलेरी व विनोद खिलेरी ने उन्हें बचाने की कोशिश की तो उन पर भी हमला कर दिया। ग्रामीणों के आने पर हमलावर वहां से भाग खड़े हुए लेकिन वे तीन शिकारी महेंद्र, बलवंत व भगवानदास को भगाने में भी कामयाब हो गए। पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है।

खेजड़ली के 363 स्त्री-पुरूषों के बलिदान की पूरी गाथा :-

‘साको-363’ (खेजड़ली बलिदान दिवस) के अवसर पर 363 वीर-शहीदों को शत्-शत् नमन 

आज सारी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण की चिंता में पर्यावरण चेतना के लिये सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर विभिन्न कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। भारतीय जनमानस में पर्यावरण संरक्षण की चेतना और पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों की परम्परा सदियों पुरानी है। हमारे धर्मग्रंथ, हमारी सामाजिक कथायें और हमारी जातीय परम्परायें हमें प्रकृति से जोड़ती है। प्रकृति संरक्षण हमारी जीवन शैली में सर्वोच्च् प्राथमिकता का विषय रहा है। प्रकृति संरक्षण के लिये प्राणोत्सर्ग कर देने की घटनाओं ने समूचे विश्व में भारत के प्रकृति प्रेम का परचम फहराया है। अमृता देवी और पर्यावरण रक्षक बिश्नोई समाज की प्रकृति प्रेम की एक घटना हमारे राष्ट्रीय इतिहास में स्वर्णिम पृष्ठों में अंकित है। सन् 1730 में राजस्थान के जोधपुर राज्य में छोटे से गांव खेजड़ली में घटित इस घटना का विश्व इतिहास में कोई सानी नहीं है।
जोधपुर बसाने वाले राव जोधा जी गुरु जम्भेश्वर जी के ही शिष्य थे। जोधा जी के प्रार्थना करने पर गुरु जम्भेश्वर जी ने ही उन्हें बैरीसाल का नगाड़ा दिया था। गुरु जाम्भोजी की कृपा से ही जोधपुर नगर आबाद हुआ था। उन्ही जोड़ा जी की परम्परा में विक्रम सम्वत 1700 में अजित सिंह जी जोधपुर के राज बने। अजित सिंह जी पूर्णतय धर्मात्मा/धार्मिक राजा थे। ऐसे ही अजित सिंह का पुत्र अभयसिंह हुआ जो अपने पिता के स्वर्गवासी होने के पश्चात राज-सिंहासन पर बैठा। अपने राज्य की सीमा की सुरक्षा के साथ ही राज्य विस्तार की भावना से कई इलाकों पर चडाई कर दी व इस प्रकार अपना अधिकतर समय युद्ध में ही व्यतीत करते थे। सन् 1730 में जोधपुर के राजा अभयसिंह को जब युद्ध से थोड़ा अवकाश मिला तो उन्होंने महल बनवाने का निश्चय किया। राजा अभय सिंह के राज में राज्य का सम्पूर्ण कार्य सूत्र भंडारी गिरधर के ही हाथ में था, वह जैसा चाहता था वैसा ही प्रजा से करवा भी लेता था। राज्य पूर्णतय गिरधर के हाथ में चढ़ चूका था, इसीलिए गिरधर की ही मनमानी चलती थी। गिरधर स्वंय ही राजा के पास जाकर कहने लगा कि- हे अन्नदाता ! इस समय राज कोष कि हालत बहुत खराब चल रही है कर्मचारियों की नोकरी के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं तथा आपने जो किला बनवाना शुरू किया हुआ है उसके लिए चूने का भट्टा जलाने के लिए इंधन-सामग्री चाहिए। यदि आप आज्ञा दे तो मैं इसकी व्यवस्था कर दूं। मुझे पता चला है की यहाँ पास ही में बिश्नोईयों के गाँव में खेजड़ी के बहुत से वृक्ष है उन्हें कटवाकर लाता हूँ और उस इंधन से चुन जला लिया जाएगा। और अपनी समस्या भी हल हो जायेगी। इस पर रजा अभय सिंह ने उसे समझाते हुए कहा कि बिश्नोई लोग जाम्भोजी के शिष्य हैं, वे तुम्हे हरे वृक्ष नहीं काटने देंगे। तुम्हे खाली हाथ ही लोटना पड़ेगा। तो इस पर गिरधर ने कहा कि कोई बात नहीं अगर वो हमें पेड़ नहीं काटने देंगे तो हम उनके बदले उनसे कुछ रूपये की मांग रख देंगे, और उन रुपयों से हम किसी अन्य जगह से पेड़ों की व्यवस्था कर लेंगे। हमारे तो दोनों ही हाथों में लडडू हैं। इस प्रकार गिरधर रजा अभय सिंह को पूर्ण आश्वासन देकर कुछ सिपाहियों के साथ जोधपुर से चल कर 25 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में खेजड़ली गाँव पहुंचा और वृक्ष कटवाना शुरू कर दिया। वृक्षों पर कुल्हाड़ी की चोट से पड़ने वाली आवाज़ को वहाँ के लोगो ने सुना तो देखते ही देखते वहाँ पर कई आदमी इकट्ठा हो गए, और उन वृक्षों को काटने वाले आततायी लोगो से कुल्हाड़ी छीन ली और उनको वहां से वापिस भगा दिया। निहत्थे कर्मचारीयों ने जब यह वृत्तांत गिरधर को सुनाया तो गिरधर क्रोधित होते हुए उन बिश्नोई समुदाय के लोगो के पास पहुंचा और कहने लगा की आप लोग हॉट कोण है हमारे कर्मचारीयों को रोकने वाले? हम राजा अभय सिंह के आदेशानुसार ही यहाँ आयें हैं। हमारा अपमान राजा का अपमान है। आप लोग हमें इन पेड़ो को काटने से नहीं रोक सकते। तो इस पर बिश्नोईयों की तरफ से अणदे ने आगे बढकर कहा की हमें पता नहीं था की आप कौन हैं? पर आप जो भी हैं सायद आपको ज्ञात नहीं है की आप बिश्नोई के इलाके में प्रवेश कर गए हैं और यदि आप जोधुर से इन पेड़ो को काटने के उद्देश्य से ही आयें हैं तो आप वापिस चले जाएँ इसी में आपका भला है। तो गिरधर ने कहा कि तू गवांर होता कौन है मुझे रोकने वाला, और ऐसा कहते हुए उसने अपने कर्मचारियों को पेड़ काटने का आदेश दे दिया, पर कर्मचारी निहत्थे होने के कर्ण पेड़ काटने का साहस नहीं कर सके, और इस प्रकार से उन कर्मचारियों ने वृक्ष काटने से साफ़ मना करते हुए जोधपुर वापसी कि तैयारी करने लगे। तो इस पर गिरधर ने कहा कि चलो हम पेड़ नहीं काटेंगे पर आपको इसके बदले में रूपये देने होंगे तो बिश्नोईयों ने उसमे भी साफ़ मना कर दिया कि आप हमारी ही इस कमाई से कहीं और जगह से पेड़ कटवाओगे, और ये पाप हम नहीं कर सकते। आप चाहें तो हमारे सिर काट सकते हो पर हम पेड़ो को नहीं काटने देंगे। इस पर गिरधर चुप-चाप वहाँ से जोधपुर के लिए निकल पड़ा। जाते समय बिश्नोइयोन से उसकी दशा से अनुमान लगा लिया था कि अब जरुर कोई बड़ी विपदा आने वाली है क्योंकि वह क्रोध से भरा हुआ था और उसके होठ फड़क रहे थे । इसीलिए हमें चेन से नहीं बैठना चाहिए । दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता अवश्य ही दिखाएगा। इसीलिए कि बिश्नोईयों को ये आभाष हो गया था कि अब ये दुष्ट सेना के साथ आ सकता है इसीलिए बिश्नोईयों ने अपने पास के 84 गाँवों को चिट्ठी लिखी जिसमे सारा वृतांत बताने के साथ ही ये भी लिखा कि अब समय आ गया है हमें अपने प्राणों को दांव पर लगाने का, अब समय आ गया है हमें हमारे गुरु के सच्चे अनुयायी कहलाने का इसीलिए जो जो अपना धड कटवाने के लिए तैयार हैं वो जल्दी से जल्दी खेजड़ली पहुंचे। इस पत्र को लिखकर फिर ये पत्र पत्र-वाहकों को देकर भेज और अतिशीघ्र सूचित किया। पत्र मिलते ही 84 गाँवों के लोग आने लगे। कुछ ने गुड़े तो कुछ ने खेजड़ली में आसन लगाया। अब सब गिरधर कि प्रतीक्षा करने लगे। उधर गिरधर खिन मन से जोधपुर पहुंचा और खेजड़ली घटना का बढ़ा-चढ़ा कर सुनाया । राजा भी कुछ क्रोधित हुआ पर जल्द ही शांत भी हो गया। पर गिरधर फिर से कहने लगा कि ये बिश्नोई लोग धरम के नाम पर दिनोदिन उच्छखल होते जा रहे हैं जब तक इनको दण्डित नहीं किया जाएगा तब तक ये इसी प्रकार करते रहेंगे। इसीलिए मेरा तो यही विचार है कि मुझे बहुत बड़ी सेना के साथ वहाँ भेजा जाये, मैं वहाँ के सम्पूर्ण वृक्ष कटवा लाता हूँ ये लोग इन्ही पर ही तो गर्व कर रहे हैं फिर "न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी" तो इस पर अभय सिंह ने कहा कि ये जाम्भोजी के शिष्य हैं ये मर जायेंगे मगर पीछे नहीं हटेंगे, और आज तक हमारे दादा जी से लेकर किसी ने भी निर्दोष पर अत्याचार नहीं किया है, वे हमेशा ही वृक्षों कि रक्षा करते आये हैं, अब अगर मैं ऐसा करूंगा तो मेरा तो कुल ही कलंकित हो जायेगा ना। तुम्हारी बुद्धि ही ना जाने ऐसी क्यों हो गयी है कि वो तुम्हे धरम-विरुद्ध मार्ग पर ही धकेल रही है। इतना बड़ा फैसला लेने से पहले मैं अपनी नगरी के विद्वानों से सलाह लूँगा, आगे कि कारवाही उसकी के अनुसार होगी । इस प्रकार जब सभी विद्वानों कि सलाह ली गयी तो सभी ने ही कहा कि धर्म कि मर्यादा जो आपके यहाँ आदि-काल से चली आ रही है उसे नहीं तोडना चाहिए, और फर इन बिश्नोईयों का इसमें निजी स्वार्थ ही क्या है? उनका कार्य तो सर्वजन हिताय है और जो कार्य सर्वसाधारण कि भलाई के लिए हो उसे ज्ञानी लोग धर्म कहते हैं। इसिलए उन्हें मरने कि बात तो अपने मन से ही निकाल दीजिये हमारा तो यही मत है अब आपको जैसा उचित कगे वैसा ही करो। तो गिरधर ने राजा के पास आकर कहा कि ये सब तो आपके विरोधी हैं, अगर ये आपके सहयोगी होते तो ये राज्य की उन्नति की ही बात कहते । इधर देखिये आपका किला अधुरा पड़ा है, राजा अगर प्रजा पर शासन नहीं चला सकता तो वह कहाँ का राजा है? इस प्रकार से प्रजा मनमानी करने लग जायेगी तो तुम्हारा शासन डोल जाएगा। इस प्रकार से राजा व गिरधर के भीच में बहुत वार्ता हुयी पर अंत में राजा अभयसिंह को गिरधर ने अपने वाकजाल में फंसा ही लिया और एक बड़ी सेना के साथ खेजड़ली जाने की आज्ञा ले ली और आज्ञा मिलते ही देरी न करते हुए जल्दी ही गिरधर बड़ी से सेना और पेड़ काटने वाले मजदूरों के साथ खेजड़ली पहुँच गया। और वहीँ जाकर सेना डेरा लगाया और जगह-जगह अपने पर तम्बू लगा लिए। बिश्नोईयों की ज़मात उस रात सो ना सकी किन्तु गिरधर अपनी योजना को प्रातःकाल में ही सफल करने के विचार कर के रात्रि में मंत्रणा कर के सो गया। बिश्नोई लोग पूरी रात मंत्रणा ही करते रहे की प्रातःकाल में ये दुष्ट अपने सम्पूर्ण बल लगाएगा और निश्चित ही पेड़ काटने का प्रयास करेगा। इसीलिए रात्रि में सभी बिश्नोईयों ने मिलकर ये निर्णय लिया कि हम लोग प्रजा हैं, यह राजा का सेन्यबल है, इन लोगो के पास शस्त्र है हमारे पास नहीं है। इसीलिए अगर हम इनसे युद्ध करते हैं तो जीत नहीं सकते, हिंसा से तो हिंसा अधिक ही होगी। गुरु जाम्भोजी ने कहा है कि "जै कोई आवै हो हो कर ता आपजै हुईये पानी" यदि हम लोग इस सिद्धांत को अपनाए तभी सफल हो सकते हैं इसलिए प्रातःकाल में जब वह गिरधर पेड़ो को कटवाना शुरू करें तो तब जितने भी रुंख काटने वाले इकट्ठे रहेंगे और अलग-अलग पेड़ो को काटेंगे तो उतने ही लोग इन रुंखो से चिपक जायेंगे। शरीर कटवा लेंगे पर रुंखो को नहीं काटने देंगे। किसी प्रकार का सामना नहीं करना है, मन में सहनशीलता धारण करनी होगी, कहीं ऐसा न हो कि आप लोग अत्याचार देखकर उतेजित हो जाओ और युद्ध कर बैठो अगर ऐसा है तो कृप्या पीछे हट जायें। हमें यहाँ शांति से कार्य करना है। उधर सूर्योदय पर गिरधर भंडारी और उसकी सेना उठी और और उठते ही अच्छा मौका देखकर पेड़ काटने शुरू कर दिए। वृक्षों पर कुल्हाड़ी की चोट से पड़ने वाली आवाज़ को जब बिश्नोई समुदाय के लोगो ने सुना तो देखते ही देखते वहाँ पर कई-सौ आदमी इकट्ठा हो गए, सभी नारी-पुरुष अपना जीवन समपर्ण करने आये थे। और तुरंत भगवान् विष्णु को हृदय में धारण करके जिभ्या से भगवान् विष्णु का ही जप करते हुए, गुरु जम्भेश्वर जी को नमन करते हुए वहाँ से 363 बिश्नोईयों(69 महिलाये और 294 पुरूष) ने प्रस्थान किया और जहां वृक्ष काटे जा रहे थे, वहाँ जाकर बिना कुछ बोले-सुने निर्भय होकर रुंखो से चिपक गए। वहाँ पर राजकर्मचारी खेजड़ी पर घाव कर ही रहे थे कि उसी पर इन बिश्नोईयों ने अपने शरीर को रख दिया। उन रुंखो को जो पहले से चोट लग चुकी थी उसके लिए परमात्मा से माफ़ी मांगी आगे के लिए अपना शरीर पेड़ो पर रखते हुए उन पेड़ो को सुरक्षित रख दिया। जो चोट पेड़ो पर पड़ रही थी अब वही शरीरों पर पड़ रही थी। शरीर बिना कोई हुंकार किये ही ये सब झेल रहे थे। इस बलिदान यज्ञ में सर्वप्रथम आहुति देने का श्रेय 42 वर्षीय महिला "अमृता देवी" को मिलता है। इनके पीछे इनकी तीन पुत्रियां व पति रामू खोड़ भी थे। इनके बलिदान को देखकर इनकी माता जी कान्हा कालीरावणी ने भी पीछे रहना ठीक नहीं समझा व अपने प्राणों कि आहुति भी दे दी। पुरुषो में सर्वप्रथम अणदोजी वीरता वणियाल चचो जी उधोजी, काह्नोजी तथा किसान जी ने अपने प्राणों कि आहुति खेजड़ी वृक्षों कि रक्षार्थ में दी। देखते ही देखते 363 शरीरों के हाथ-पाँव, सिर-धड़ आदि के टुकड़े-टुकड़े हो कर धरती पर गिरने लगे। धरती खून से लाल हो गयी। यह घटना भादवा सुदी दशमी,मंगलवार, विक्रम संवत 1787 कि है। गिरधर ने जब तक रोकने का आदेश नहीं दिया तब तक वे कर्मचारी शरीर के टुकड़े करते ही रहे। 363 शरीरों के ना जाने कितने ही टुकड़े उन दया-हीन जानो ने किये होंगे, उसका कोई अन्तपार नही है। जब वे कर्मचारी एक एक शरीर क टुकड़े को काट चुके थे तो जब पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि अभी भी कई-सौ बिश्नोई समुदाय के लोग इन रुंखो के लिए जान देने के लिए तैयार हैं। तब कर्मचारी लोगों का साहस जवाब दे गया वो सब कुल्हाड़ी फेंक कर जोधपुर के लिए भाग खड़े हुए। सैनिको ने भी उन्ही का ही अनुसरण किया। आते समय जो गिरधर सब से आगे आया था जाते समय वही हारे हुए मन से अपनी हार पर उदास होकर वापिस लोट गे और जोधपुर नरेश को पूरी घटना से अवगत करवाया। अभयसिंह ने इस पर आश्चर्य परकत करते हुए गिरधर को दण्डित किया और कहा कि रे दुष्ट ! यह पाप तुमने किया है किन्तु मेरे साशन अधिकार में हुआ है इसीलिए इसके फल का भागी तो मैं ही हूँ। एक तो वो लोग हैं जो परीक्षों कि रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे रहे हैं और एक तू हैं जो उन्ही के प्राण लेकर आया है। अरे निर्दयी ! कुछ तो दया करनी सीखी होती तूने। इस प्रकार बाद में अभयसिंह खुद भी पश्चाताप कि आग में जलने लगा। फिर एक दिन अभयसिंह खुद बिश्नोईयों कि ज़मात में जाकर अपने सिर कि पगड़ी बिश्नोईयों के पैरों में रख दी- और प्रार्थना करते हुए कहा कि ये मेरा ये सिर आपके चरणों में हैं आप चाहे तो इसे काट दे चाहे तो छोड़ दे, मैं आपका अपराधी हूँ। जब तक जिन्दा हूँ तब तक पश्चाताप की आग में जलता रहूँगा। तो बिश्नोईयों ने कहा कि हम तो वृक्षों के लिए प्राण न्योछावर करने वाले हैं हमसे आपका सिर नहीं काटा जाएगा। आप हम पर बस यहीं उपकार करें कि जिन वृक्षों को बचाने के लिए बलिदान दिया है वो वृक्ष कभी ना काटे जाएँ। और अगर कोई काटता है तो उसमे दंड का प्रावधान हो। अभयसिंह ने उनकी बात स्वीकार करते हुए उन बिश्नोईयों को एक पट्टा लिखकर दिया जिसमे भविष्य में ऐसी कोई घटना के ना होने का वचन था। इस वन को हरा-भरा बनवाऊंगा ऐसा कहते हुए अभयसिंह जोधपुर पहुंचा और अपने राज्य में वृक्षों कि रक्षा तथा जीव रक्षा का नियम बना दिया तथा उसका पालन भी सख्ती से होने लगा।
यह खेजडली बलिदान कि घटना 21 सितम्बर 1730, भादवा सुदी दशमी,मंगलवार, विक्रम संवत 1787 का ऐतिहासिक दिन विश्व इतिहास में इस अनूठी घटना के लिये हमेशा याद किया जायेगा। समूचे विश्व में पेड़ रक्षा में अपने प्राणों को उत्सर्ग कर देने की ऐसी कोई दूसरी घटना का विवरण नहीं मिलता है। हमारे देश में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय तथा सभी राज्य सरकारों द्वारा पर्यावरण एवं वन्यजीवों के संरक्षण के लिये अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। हमारे यहां प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तत्वावधान में एक माह की अवधि का राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान भी चलाया जाता है। यह विडम्बना ही कही जायेगी कि हमारे सरकारी लोक चेतना प्रयासों को इस महान घटना से कहीं भी नहीं जोड़ा गया है। हमारे यहां राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के लिये इस महान दिन से उपयुक्त कोई दूसरा दिन कैसे हो सकता है? आज सबसे पहली आवश्यकता इस बात की है कि 21 सितम्बर के दिन को भारत का पर्यावरण दिवस घोषित किया जाये यह पर्यावरण शहीदों के प्रति कृतज्ञ राष्ट्र की सच्ची श्रृद्धांजलि होगी और इससे प्रकृति सरंक्षण की जातीय चेतना का विस्तार हमारी राष्ट्रीय चेतना तक होगा, इससे हमारा पर्यावरण समृद्ध हो सकेगा।

जम्भ ज्योति शोभायात्रा में उमड़े श्रद्धालु :-
सिरसा : बिश्नोई समाज के स्थापना स्थल मुकाम के समराथल से जम्भ ज्योति शहर में पहुंची तो बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़े। जम्भ ज्योति को लेकर साथ शोभा यात्र शहर के विभिन्न बाजारों से होती हुई नवस्थापित बिश्नोई मंदिर पहुंची। मंदिर में जम्भ ज्याति स्थापना के बाद दो दिवसीय कार्यक्रम शुरू होगा।बिश्नोई समाज की ओर से बिश्नोई धर्मशाला में वर्ष 2006 में भव्य मंदिर निर्माण शुरू हुआ। राजस्थान से मंगवाए विशेष पत्थरों और शीशे की कारीगरी से तैयार मंदिर में ज्योति स्थापित करने के लिए बिश्नोई समाज के स्थापना स्थल समराथल से जम्भ ज्योति सिरसा लाने की तैयार की गई। जम्भ ज्योति देर सायं सिरसा पहुंची तो टाऊन पार्क से शोभा यात्र का आयोजन किया गया। 1शोभा यात्र टाऊन पार्क से शुरू हुई और मुख्य डाकघर रोड, सदर बाजार, सिटी थाना रोड, नोहरिया बाजार, चांदनी चौक बाजार, हिसारिया बाजार से होती हुई बिश्नोई धर्मशाला परिसर में नवस्थापित बिश्नोई मंदिर में पहुंची। रास्ते में जगह-जगह बिश्नोई समाज के लोगों ने शोभा यात्र का स्वागत किया। रात्रि के समय जम्भ ज्योति मंदिर में स्थापित होने के बाद सत्संग कार्यक्रम शुरू होगा। शोभा यात्र के साथ आचार्य कृष्णानंद महाराज, और स्वामी राजेंद्रानंद भी पहुंचे।

Tuesday 10 September 2013

एसपी ने बिश्नोई धर्मशाला का उद्घाटन किया :-

पीलीबंगा : श्री बिश्नोई धर्मशाला निर्माण समिति द्वारा नवनिर्मित बिश्नोई धर्मशाला का उद्घाटन एसपी केसी बिश्नोई ने किया। उन्होंने धर्मशाला निर्माण में सहयोग देने वाले सभी दानदाताओं का आभार जताया। जिला पुलिस अधीक्षक कैलाशचंद्र बिश्नोई ने धर्मशाला निर्माण में सहयोग देने वालों को समिति की तरफ से स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। समिति सचिव विनोद धारणियां ने समिति की तरफ से एसपी का शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया।

Monday 9 September 2013

सात दिवसीय जन जगरूकता अभियान व मदभगवद कथा का आयोजन


अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा द्वारा प्रसाशन द्वारा कुतों के बन्धीकरण के लिए ना पकड़ना व मारे गयें सात हिरणों के दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही ना करने पर एक आपात बैठक बुलाई गई। बैठक की अध्यक्षता दिल्ली से आये सभा के राष्ट्रीया सचिव, संध्या बिश्नोई ने की। सभा के सदस्य एवं पीएफए फतेहाबाद अध्यक्ष विनोद कड़वासरा ने जानकारी देते हुए बताया कि इस बैठक में पिछले डेढ़ साल में मारे गये 188 काला हिरणों के एक बड़े आकड़े के प्रति चिन्ता प्रकट की गई और हिरणों के मरने के कारणों पर विचार विर्मश किया गया। डेढ वर्ष में 188 काले हिरणों की मौत अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर चिन्तनीय है, क्योकि भारत अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र से सम्बन्धित कई बहुराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलनों जैसे कि जैव विविधता सम्मेलन, लुप्तप्राय प्रजातियों के अन्तराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन इत्यादि शामिल है। इससे संबधित भारत में स्थित वल्ड वाईल्ड फंड, आई0यु0सी0एन0, यु0एन0 रेजिडेन्ट
कोर्डिनेटर कार्यालय, चैयरमेन नैशनल बोर्ड फार वाईल्ड लाईफ, मुख्य वन्य जीव संरक्षक को वन्य जीव संस्थान की यह रिपोर्ट, वन्य जीवों की सूचि और गत पांच वर्षो में क्षेत्र में मारे गये शड्यूल-1 के सभी वन्य जीवों का ब्यौरा भेजा गया है। उक्त संस्थाओं को यह भी अनुरोध किया गया है कि एन0पी0सी0आई0एल0 को तुरन्त वन्य जीव प्राकृतिक आवास खाली करने के निर्देश देवें व सरकार को शिकारी कुतों के बन्धीयाकरण व अन्य कोई योजना बनायें। और निर्णय लिया कि हिरण बाहुल्य क्षेत्रों में हडडा रोड़ी हटवाई जायें और मरे पशुओं का ठेका दिया जायें, क्योकि हड़़ड़ा रोड़ी के कारण आवारा कुतें मासाहारी होते है जो कि मृतक पशु ना मिलने पर बच्चों, बुजर्गो और वन्य जीवों को निशाना बनाते है। बैठक वन्य जीव विभाग द्वारा ब्लेडनूमा तार लगाने वालों के विरूद्ध कोई नोटिस या सार्वजनिक चेतावनी जारी नही कर रहा है, जो कि वन्य जीव विभाग की लापरवाही को दर्शाता है।  
सभा के सचिव कृष्ण काकड़ ने बताया कि राजस्थान के चुरू स्थित श्री गुरू जम्भेश्वर धाम से कृपाचार्य जी महाराज द्वारा धरना स्थल पर सात दिवसीय जन जगरूकता अभियान व मदभगवद कथा का आयोजन करवाया जायगा। जीव के प्रति दया भावना रखने वाले सभी बिरादरी के लोगों को इन वन्य जीवों के प्रति जागरूक किया जायें, यदि प्रसाशन द्वारा जल्द कोई कार्यवाही नही की जाती है तो समाज को आन्दोलन की राह पकड़ने पर मजबूर होना पडेगा और डीसी दफतर के सामने सत्संग के साथ साथ धरना भी दिया जा सकता है। इस अवसर पर जीव रक्षा सभा के रामेश्वर दास, जिला प्रधान राधेश्याम घारनियांए उपप्रधान मा0 मदन लाल, सतबीर सहारण, विनोद कड़वासरा, इन्द्रराज ज्याणी, छोटू भादू,मनफुल भादू व हरफुल कड़वासरा मौजूद थे।

Friday 6 September 2013

विल्होजी महाराज के मेले में उमड़े श्रद्धालु :-



मेले में विश्नोई समाज ने लिया पर्यावरण संरक्षण का संकल्प, हवन में दी आहुतियां, जोधपुर के रामड़ावास गांव मे गुरुवार को विल्होजी महाराज का भव्य मेला भरा गया। जिसमे विश्नोई समाज सहित 36 कौम के पुरुष-महिलाओं की भारी भीड़ उमड़ी। 
विश्नोई समाज के लोगों ने यज्ञ में संकल्प के साथ गुरुदेव का आशीर्वाद भी लिया। पर्यावरण शुद्धिकरण मानते हुए व दिल में श्रद्धा लिए विल्होजी महाराज के भक्तों ने पूरे दिन भव्य ज्योत भी जलायी और ज्योत के चारों फेरियां देकर मन्नते भी मांगी। मेले में लोगों ने पर्यावरण बचाने, पौधे लगाने व युवाओं ने नशे कि प्रवृति से दूर रहने का संकल्प लिया।

Thursday 5 September 2013

थाने के सामने मृत हिरण रख कर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन

मेड़ता रोड ,जारोड़ा खेडूली मार्ग के बीच बुधवार रात हिरण शिकार की घटना के बाद वन विभाग के अधिकारियों के मौके पर नहीं पहुंचने पर गुरुवार को ग्रामीणों व वन्य जीव प्रेमियों का गुस्सा फूट पड़ा। दोपहर में लोगों ने यहां मेड़ता रोड थाने के बाहर हिरण का शव रख कर प्रदर्शन किया। नागौर से आए रेंजर द्वारा दोषी कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही का आश्वासन देने पर दोपहर बाद हिरण का शव उठाकर पोस्टमार्टम करवाया गया। जेसास चौराहे के पास बुधवार रात करीब साढ़े दस बजे बंदूक से फायर की आवाज सुनकर जगदीश व भूरा राम पोटलिया बाहर आए तो उन्होंने देखा कि एक हिरण मौके पर मृत पड़ा था। उन्हें कुछ लोग वहां से भागते दिखे। उन्होंने पुलिस को सूचना दी। थानाधिकारी संपत सिंह, वन्य जीव प्रेमी सीपी विश्नोई रात को पहुंचे और हिरण के शव को लेकर मेड़ता रोड आ गए। मगर सूचना के बावजूद मेड़ता वन विभाग के कर्मचारी न तो मौके पर आए और न ही मोबाइल पर संतोषप्रद जवाब दिया। 
प्रदर्शन के बाद पहुंचे अधिकारी 
वन विभाग के कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग को लेकर गुरुवार सुबह दस बजे जीव रक्षा समिति के जिलाध्यक्ष नाथूराम भांभू, प्रेमसुख विश्नोई, रामेश्वर डारा, सहदेव, कालूराम ऐचरा, खेताराम, रामू राम डारा सहित लोग हिरण के शव को लेकर थाने के सामने आ गए और शव को गेट के बीच में रख दिया। चार घंटे बाद नागौर से मेड़ता सिटी से रेंजर प्रभारी श्रीराम फरड़ौदा दोपहर दो बजे वहां पहुंचे। उन्होंने नागौर डीएफओ वेदप्रकाश गुर्जर से बात की। आश्वासन दिया कि वन विभाग के कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही की जाएगी। इस बात पर समझौता होने पर दोपहर ढाई बजे मृत हिरण उठाया और पोस्टमार्टम के बाद शव दफनाया गया। 
जिले में लगातार हो रही है घटनाएं 
नागौर जिले में हिरण शिकार की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। हाल ही डेगाना के पास चांदारूण में भी हिरण की मार दिया गया। जिले के रोहिणी गांव में तो कई साल से हिरण मारकर उसका मांस बेचने का खुलासा हुआ। ऐसा करने वाले एक आदमी को पकड़ा भी गया, लेकिन इस पूरे प्रकरण में अभी तक ठोस कार्रवाई न होने से इन शिकारियों के हौसले बुलंद हो रहे हैं। 

Monday 2 September 2013

रायसिंह नगर में धरना समाप्त


उपखंड कार्यालय रायसिंह नगर (श्री गंगानगर )पर विगत 12 दिनों से चल रहा धरना सोमवार को समाप्त हो गया। गौरतलब है कि दिनांक 22.08.13 से श्री जम्भेश्वर पर्यावरण एवं जीवरक्षा प्रदेश संस्था के तत्वाधान में बिश्नोई समाज एवं वन्य जीव प्रेमी 11 सूत्री मांगो को लेकर धरने पर बेठे थे । रविवार को संस्था के प्रदेश संरक्षक एवं मुकाम पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी रामानंद जी महाराज, संस्था के प्रदेशाध्यक्ष श्री रामरतन जी सिगड़, प्रदेश महामंत्री भानूसिंह सियाग, प्रदेश कोषाध्यक्ष अनोपाराम डूडी, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य अन्नाराम डूडी, ओमप्रकाश लेगा एवं अन्य पदाधिकारियों के साथ वन विभाग के उच्चाधिकारियों ने संस्था के प्रदेश संरक्षक कार्यालय जगद्गुरु जम्भेश्वर संस्कृत विद्याश्रम मुकाम में वार्ता की। वार्ता के सकारात्मक नतीजे सामने आये और वार्ता सफल रही। आचार्य श्री ने धरना खत्म करने का आश्वासन दिया ।
सोमवार दोपहर लगभग 12 बजे संस्था के प्रदेश संरक्षक मुकाम पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी रामानंद जी, प्रदेशाध्यक्ष रामरतन सिगड़, प्रदेश महामंत्री भानूसिंह सियाग, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य ओमप्रकाश लेघा, वन विभाग के अधिकारी के.आर. काला प्रतिनिधि सीसीएफ आॅफिस बीकानेर,श्रीगंगानगर के उप वन संरक्षक डी.सी. दुल्लड़, रायसिंहनगर के क्षेत्रीय वन अधिकारी बलवंत कड़वासरा के साथ धरना स्थल पर पहुंचे ।
धरना स्थल पर बिश्नोई समाज के साथ साथ अन्य जाति-समुदाय के लगभग 300 व्यक्ति मोजूद थे।
रामानंद जी सहित सभी पदाधिकारियों ने धरनार्थियों को संबोंधित कर मुकाम में हुई वार्ता व् सहमती के बिन्दुओ को बताया । वन्य जीव प्रेमियों की लगभग सभी मांगे मान ली गयी । पूर्व की घटना में दोषी दो कर्मचारियों का स्थानान्तरण,आरी युक्त जालियो पर प्रतिबन्ध ,प्लास्टिक जालियों पर प्रतिबन्ध ,अमृता देवी उद्यान डाबला से स्वस्थ वन्य जीवो को प्राकृतिक परिवेश में स्थानान्तरण सहित सभी मांगे मान ली गयी और वन विभाग के अधिकारियो ने यह आश्वासन दिया कि भविष्य में आपको किसी भी प्रकार की शिकायत का मौका नही दिया जायेगा । बिश्नोई समाज निस्वार्थ भाव से जो सेवा कर रहे है उनके आगे वन विभाग के अधिकारी नतमस्तक नजर आये और कहा कि हम लोग वेतन लेकर ये कार्य करते है जबकि बिश्नोई समाज अपने नियमों और धर्म की खातिर पर्यावरण रक्षा हेतु जान पर खेल जाते है जिससे हमको नई ऊर्जा मिलती है। वन विभाग के अधिकारीयों ने संस्था के रायसिसंहनगर तहसील महामंत्री श्री नानुराम डारा को मिठाई खिलाकर धरना समाप्त करवाया और सभी गिले - शिकवे दूर किये ।